Tuesday, July 8, 2014

मैं पंडितानी कैसे बनी

बड़े आपार दुःख के साथ आपको बताना पड़ रहा है की मेरे पतिदेव अब नहीं रहे. एक तरह से चलो अच्छा ही हुआ. अब मैं सरे आम भोलू जैसे लौंडे से अपनी चूत मारा सकती थी. अब तो इनका भी डर नहीं रहा. वैसे मुझे लगता है कि इनको अंदेशा तो था कि इनके पीठ पीछे मैं लौंडो से अपनी चूत की खाज मिटा रही हूँ पर एक लाज शर्म नाम की चीज़ से खुले आम तो नहीं चुदवा सकती थी. खैर इस उम्र में भी मैं और ज्यादा चुदासी हो रही हूँ.

पर यह वाकया तो सुनिए. पतिदेव ज्यादा कमाते नहीं थे. पर पैसे इतने नहीं बचा कर भी रखे. इनके लंड में भी इतना दम तो था नहीं की बाहर जा कर अपनी ठरक मिटाते. वैसे ठरक होती तो मैं औरों से क्यों चुद्वाती. खैर ये तो बाद की बात है. अब जब इनका देहांत हो गया तो इतने पैसे तो थे नहीं कि मैं ढंग से दाह संस्कार करा सकूं. भोज तो जैसे तैसे हो गया, पर पंडित को दक्षिणा देने लायक पैसे नहीं बचे. ये पंडित इनके मित्र थे. कुछ २-३ सालों से इनकी अच्छी खासी जान पहचान हो गयी थी. पंडित जी विधुर थे. इनकी औरत का कुछ समय पहले ही देहांत हो चुका था. देखने में अच्छे खासे आकर्षक थे. अभी ५३-५४ के ही शायद हुए होंगे. मेरे हमउम्र थे. हृष्ट पुष्ट शरीर था. और मैं अंदाज़ा लगाती हूँ की इनका लंड भी करीब ७ इंच का होना चाहिए. खैर आदमी के शरीर से लंड का ज्यादा पता नहीं लगता. ये बात तो बाद में पता चली. पंडितजी सदैव धोती कुरता में हुआ करते थे. जनेऊ भी पहनते थे. पर स्त्री गामी तो नहीं प्रतीत होते थे. पर अच्छे अच्छे लोगो की नीयत मैंने डोलते हुए देखा है.

मैंने पंडितजी को श्राद्ध के भोज के बाद घर पर दक्षिणा देने के लिए बुलाया. पंडितजी उधर चौकी पर बैठे थे. इनको गए हुए अभी १० दिन भी नहीं बीता था और में चुदासी हो चुकी थी. पैसे नहीं थे तो शायद पंडित चूत ही दक्षिणा ले ले. पर सीधे मुंह कैसे कहती. पंडित जी चौकी पर बैठे थे और मैं उनके पैर के पास बैठ गयी.
"पंडित जी, आपको घर की हालत पता तो होगी ही, आप समझ ही सकते हैं."
"जी हाँ, भाभीजी, पर आपको तो पता ही है की बिना दक्षिणा के हमारे परम प्रिय मित्र को मुक्ति नहीं मिलेगी".

"पर पंडित जी, मेरे पास इतने पैसे नहीं है, घर में जो कुछ है वो भी सब बिकने के कगार पर है. मैं भी सोच रही हूँ कि इनके बाद अब मेरा क्या होगा. मेरे पास न तो को काम है और न ही पैसे. अब आप ही कोई उपाय सुझाईये"
यह कह कर मैं ऐसे बैठ गयी जैसे लोग पखाने में बैठते हैं. इससे अगर मेरी साड़ी जरा सी ऊपर हो गयी तो पंडितजी को मेरे बाल रहित चूत का दर्शन हो जायेगा. पर रिझाना भी तो एक कला है.

पंडितजी शायद अभी तक मेरा इशारा नहीं समझे थे. कहने लगे
"भाभी जी, दुनिया का तो ऐसा ही रीती रिवाज है जो निभाना ही पड़ता है."
अब मुझे लगा की अब नहीं डोरा डाला तो पता नहीं आगे क्या हो. मैंने सफाई से बेपरवाही का नाटक करते हुए अपना आँचल गिरा दिया. ब्रा तो पहले ही नहीं पहना था और मेरी ब्लाउज भी बिना बांह की थी. यो लो कट ब्लाउज था तो पीछे से पूरे पीठ की दर्शन और आगे से दरारों को दिखता था. उस पर से मैंने इसे ऐसे पहन रखा था जिससे मेरे कम से कम एक मुम्मे तो दिख ही जाये.
आँचल के गिरते ही, मैंने झट से उसे उठा लिया, किन्तु इतना समय दिया कि पंडितजी एक अच्छी नज़र से उसे देख ले.

मैंने झूठ मूठ झेंपते हुए कहा "पंडितजी मैं चाय बना कर लाती हूँ."
फिर उठते हुए मैंने आँचल को ढीला छोड़ दिया कि इसबार तो दोनों मुम्मे और चूचिया साफ़ साफ़ दिख जाये. फिर मैं पलट गयी और अपने भारी भरकम नितम्ब को थोडा लचका लिया. मैंने चोर निगाह से देखा की पंडितजी की नज़र मेरे मुम्मो से मेरे गांड तक फिसल रही थी. मैंने इसका खूब मजा लिया और मटक मटक कर किचन जा कर चाय बनाया. कनखी से देखा की पंडितजी की धोती तम्बू बन रही थी और फिर नीचे हो गयी. इस उम्र में इतना नियंत्रण तो काबिल-ऐ-तारीफ़ है. पर मौके की नजाकत समझ कर मैं चाय बना कर जल्दी आ गयी. कहीं ऐसा न हो की पंडितजी मेरे हाथ से निकल जाये.
मैंने पंडितजी को झुक कर चाय दिया और ये बिलकुल पुष्टि कर ली की पंडितजी की नज़र चाय से ज्यादा मेरे मुम्मो पर हो.
अब तो असली कारनामा था. मैं बिलकुल पहले की तरह बैठ गयी, फर्क इतना था की इस बार फिर लापरवाही का नाटक करते हुए मैंने अपनी साडी थोड़ी ऊपर उठा ली, इतनी की मेरी चूत पंडितजी की सीधे नजर में हो.

पंडितजी देख कर अनभिज्ञ रहने का पूरा प्रयत्न कर रहे थे पर उनका लंड उनकी हर कोशिश को नाकामयाब कर रहा था.
"पंडितजी, अब आप ही बताई की मैं क्या करूं".

"भाभीजी एक तरीका है, पर पता नहीं आपको पसंद आएगा या नहीं. छोडिये ये सब भी कहने की बातें नहीं हैं. मैं किसी और दिन आता हूँ, आज जरा काम है". कह कर पंडितजी जल्दी जल्दी चाय पी कर निकलने की कोशिश करने लगे. हाथ से जाता मुर्गा देख कर मैं थोडा तो परेशान हुई पर मैं भी इतनी जल्दी हार नहीं मानने वाली थी.

"अरे पंडितजी बताईए तो".
पर पंडितजी तो उठने का क्रम करने लगे. पर अचानक से उन्हें पता चला की उनका लंड को खड़ा है. इनकी चोरी अब पकड़ी गयी. मैं भी मौके का पूरा फायदा उठा कर जान बूझ कर हैरान होने लगी.

"पंडितजी ये क्या है?"
"अरे भाभीजी, कुछ भी नहीं." पंडितजी ने सोचा की अब ओखल में सर दिया है तो मूसल से क्या डरना. "मैं इस तरीके से दक्षिणा लेने की बात कर रहा था".

अब मैंने सोचा कि अब ज्यादा खेलने से काम बिगड़ सकता है, तो मैंने कहा
"भाभी जी नहीं, रानी कहिये".

यह सुन कर पंडितजी झटके से मुझे अपनी बांहों में ले लिए.
"अरे अरे, जान जरा रुको तो, दरवाजे को अच्छी तरह से बंद करने तो दो."
दरवाजा बंद करके मैं पलटी तो देखा पंडितजी तो पहले से ही नंगे तैयार हैं और उनका लंड मेरे अनुमान से अधिक लम्बा निकला.
"पंडितजी इतना बड़ा लंड मैं नहीं ले पाऊंगी"
"पंडितजी नहीं अब जान ही कहो" कह कर पंडित जी ने मेरे होठों पर अपने होंठ जड़ दिए. उनका दाया हाथ मेरी पीठ सहलाने लगा और बायाँ साड़ी के ऊपर से ही मेरी चूत खुजाने लगा. इतन जबरदस्त चुम्मा तो मुझे किसी ने नहीं दिया था. पंडितजी तो पूरे भरे हुए थे. मेरे होंठ को बिलकुल चबाने पर उतर आये. पर कुछ ख्याल कर के थोडा धीरे हुए. उनका दायाँ हाथ मेरे ब्लाउज को खोल चुका था, और मेरे मुम्मे दबा रहा था. पंडितजी अब भी बांये से मेरी चूत खुजा रहे थे और साथ साथ मेरा बायाँ स्तन मुंह में ले लिया और दायें हाथ से मेरे दायें स्तन को हलकी हलके मसल रहे थे. ओह, कितना मजा आ रहा था. इस तरह तो भोलू ने भी नहीं किया था. पंडितजी तो पंहुचे हुए खिलाडी लग रहे थे.
अब हम दोनों बिस्तर पर आ गए. पंडितजी, का हाथ अब साड़ी के अन्दर जा चुका था. अब वो मुझे ऊँगली कर रहे थे. क्या जन्नत का आनंद आ रहा था. बारी बारी से वो मेरे दोनों मुम्मे चूसते थे. ऐसा लग रहा था की चूस चूस कर दूध या खून निकाल ही देंगे.
फिर उन्होंने अपना लंड मेरे मुंह के सीध में किया और तुरंत ही अपना लंड मेरे मुंह में डाल दिया. मेरी तो साँस ही अटकने लगी थी पर पंडितजी ने धीरे धीरे आगे पीछे करना शुरू किया. मैंने कभी किसी का लंड नहीं चूसा था, पर पंडितजी की आवाजें सुन कर लग रहा था की उन्हें बड़ा मजा आ रहा है, तो मैंने भी साथ देना शुरू किया. (मैं कुछ ही दिनों में इस कला में बिलकुल ही माहिर हो गयी हूँ.)

इसके पश्चात् पंडितजी तो बिलकुल ही मैदान मारने को तैयार हो गए. इनके आठ इंच के लंड से तो पहले ही भय था पर जब सच में मेरी चूत में डाली जा रही तो मारे दर्द के मैं तो बिलबिला ही उठ. परन्तु हाय रे निर्मोही पंडितजी मेरे रोने का कोई असर नहीं हुआ, शायद उन्हें पता था की उनके लंड से जब मेरे चूत का कोना कोना खुरच जायेगा तो मजा तो कुछ और ही आएगा. और हुआ भी ऐसा ही, पंडितजी बिना रुके ठाप पर ठाप मारे जा रहे थे, जो पहले दर्द हो रहा था अब वो ही दर्द मजा हो गया था. ऐसी ठाप तो जिंदगी में कभी मिली नहीं, और तो और मैं तो सात जन्मो तक ऐसी चुदाई बिना रुके करवाती रहूँ. पंडितजी की ठाप मारने की रफ़्तार बढती गयी और इधर मैं भी चरमोत्कर्ष पर पहुंचे लगी. मैं पछा गयी और उधर पंडितजी भी दाह गए. तब ध्यान में आया कि हमारी चारपाई कितना आवाज़ कर रही है. खैर हमारे आनंद के आगे अब चारपाई भी कोई कीमत नहीं रखती.

"पंडितजी, मुझे अपनी रखैल बना लो. इतना अच्छी चुदाई तो मेरी कभी नहीं हुई. मैं तो आपके लंड की दीवानी हो गयी हूँ".
"पंडितजी नहीं रानी, जानू कहो. और रखैल तो क्या मैं तुझे अपनी धर्मपत्नी स्वीकारता हूँ," यह कह कर उन्होंने मेरे चूत से रिसते खून से मेरी सूनी मांग भर दी.

"पंडितजी ये क्या किया?"
"मैंने कहा न, मुझे जानू कहो. मैंने सब सोच लिया है, मेरी पंडिताई यहाँ ज्यादा चलती नहीं, हम लोग दुसरे शहर चले जायेंगे जहाँ हम दोनों को कोई नहीं जनता हो. मैं पंडिताई का काम शुरू कर दूंगा और रात में आ कर रात भर तुम्हे चोदूंगा. क्या मस्त चूसती हो मेरा तुम और क्या कसी चूत है. ४५ की उम्र में तुम्हारे चूत और बूबे इतने कसे कैसे हैं समझ नहीं आता."
पंडितजी मुझे बस ४५ का ही समझ रहे थे.

दूसरा भाग:
पंडितजी यानि की जानू और मैं रानी, दोनों रातों रात भाग कर दुसरे शहर आ गए. पर मेरी बुरी किस्मत ने मेरा साथ यहाँ भी नहीं छोड़ा. पंडितजी की पंडिताई नहीं चल रही थी और मुझे तो जैसे आग ही लगी हुई थी. रात रात भर चुदने के बाद भी और भी चुदने का मन करता था. एक बार सपने में मैंने इनके यजमान के साथ चुदाई का सपना देखा. सुबह तो बड़ा मन ख़राब हुआ पर बाद में मैंने खूब सोच विचार किया.
"ऐ जी, आपकी पंडिताई तो चल नहीं रही है, तो एक बात बोलूँ."
"कहो" दुखी मन से जानू ने जवाब दिया.
"कल रात में मैंने देखा की आपके तीसरे वाले यजमान पूजा के साथ मेरी भी पूजा कर रहे थे"
"क्या मतलब है तुम्हारा"
"मतलब यही कि आपकी पंडिताई नहीं चल रही है तो मैं ही हाथ बंटा दूं."
इशारों इशारों में मैंने पंडितजी को मेरा भडवा बनने को कह दिया.

पंडित जी ये सुनते ही भन्नाते हुए घर से निकल गए"
मैं अकेली घर में अपने आप को कोसने लगी कि क्यों मैंने ऐसा कह दिया. मन कर रहा था कि अपनी चूत में आग लगा दूं. साली यही चूत ही सब जंजालों की जड़ है. न ये चूत होती न ही हम लोग यहाँ आते और न ही ऐसी वैसी बात होती.
पंडितजी शाम तक नहीं आये. मैंने दिन का खाना बना कर भी नहीं खाया. और रात का खाना बनाने की हिम्मत नहीं हुई.
पंडित जी की राह देखते देखते ८ बज गए. तरह तरह के बुरे ख्याल आने लगे दिल में. कहाँ होंगे, कैसे होंगे. इतना तो मैंने अपने पहले पति के लिए भी नहीं सोचा था.
तभी देखा की पंडितजी दूर से आ रहे हैं और साथ में कोई यजमान  भी है. चलो इनका मूड तो ठीक हुआ, और एक ग्राहक भी मिल गया. कल परसों का खर्चा चल जायेगा.

"रानी इनसे मिलो, ये हैं रमेश जी"
यह सुनते ही मैं चौकन्ना हो गयी. पंडितजी कभी भी किसी के सामने मुझे रानी नहीं कहते. रानी वो तभी कहते जब हम अकेले हों और हम दोनों चुदास हो रहे हों.
खैर मैंने मुस्कुरा कर नमस्ते कहा.
"मैंने घर से निकलने के बाद बहुत सोचा तुम्हारी बात को"
"फिर"
"फिर क्या, अब इनको ले कर जाओ"
ये सुनके मेरी बांछें खिल गयी. पंडितजी ने उधर दरवाजा लगाया और मैं रमेश को ले कर अन्दर कमरे में ले गयी. बहुत दिनों के बाद नया लंड मिला है, उत्सुकता बहुत थी और उम्मीद भी बहुत थी. पर जब मैंने इस ५'८" के आदमी का ५" का ही लंड देखा तो मन थोडा दब सा गया. खैर,

रमेश जी तो तृप्त हो गए पर मेरी प्यास नहीं बुझी. तब पता चला की आदमी के कद से उसके लंड की लम्बाई नहीं पता चलती.

अब मेरी चाहत सामूहिक सम्भोग की थी. पंडित जी को बताया तो "नेकी और पूछ पूछ". उनके कुछ ग्राहक, जो मेरे भी ग्राहक थे, उनकी सामूहिक सम्भोग की प्रबल इच्छा थी.
उस दिन रात में करीब ५ लोग आये थे. सब की उम्र कुछ ५० -५५ के आस पास ही होगी. इनका मानना था की पुरानी शराब की बात ही कुछ और है. इस दुनिया में अभी भी लोग तजुर्बे को तवज्जो देते हैं.
कमरे में सभी लोग मौजूद थे. पंडितजी हमेशा की तरह बाहर ही बैठे थे. ये बहुत दिनों से बाहर किवाड़ों की छेद से अन्दर का नज़र देख कर हस्तमैथुन कर लेते थे. नतीजा मैं बहुत दिनों से पंडित जी से नहीं चुदी थी.
सामूहिक सम्भोग तो सामूहिक बलात्कार जैसा हो रहा था. लोग मेरे कपडे खीच रहे थे. और मैं पगली एक एक कर के उनका लंड पजामे, या पैंट के ऊपर से सहला रही थी. दो लोगो का मैं हाथ से सहला रही थी और एक का जीभ से. इस बीच सारे जानवर मेरे कपडे फाड़ कर मुझे निवस्त्र कर चुके थे. मुझे नंगी देख कर उनका लंड और भी हुमचने लगा. बचे दो लोग में से एक मेरी चूत में ऊँगली करने लगा और एक मेरी गांड में. कमीनो ने एक एक ऊँगली कर के चार चार उँगलियाँ मेरी चूत और गांड में घुसा दी. मैं दर्द से चिल्लाने लगी और उन्हें लगा कि मुझे मजा आ रहा है. सब के सब अब नंगे हो गए. मुझे कुतिया बना कर एक ने अपना लंड मेरे मुंह में दे दिया जिससे मेरे चिल्लाना भी बंद हो गया. और दो लोगो का लंड और पजामे से बहार सक्षार्थ हो गया था. मैं उनका लंड हिलाने लगे. बाकी बचे दो लोग अभी भी मेरी ऊँगली कर रहे थे.

अब इन लोगो ने अपनी स्थिति बदली और एक ने मुझे अपने लंड पर बिठा लिया. इसका लंड मेरे बुर पर फिट बैठ गया. अब चारों लोग एक एक कर के अपना लंड मेरे मुंह में देने लगे और एक - दो का मैं लंड हिला हिला रही थी.
फिर मुझे चित सुला कर एक ने मुझे चोदना शुरू किया और मैं निरंतर किसी को मुखमैथुन प्रदान कर रही थी और किसी दो को हस्तमैथुन. योनिमैथुन अभी भी चालू था. थोड़ी देर में एक झड गया और नया वाला तो और हरामी, उसे तो गुदामैथुन ही करना था. मुझे घोड़ी बना कर मेरी गांड चोदनी शुरू की और वो भी थोड़ी देर में झड गया. एक एक कर के सब तृप्त हो गए. पर मैं अभी तो पछाई नहीं थी. चौथा वाला मुझे थोडा करीब ले कर आया था पर वक़्त से पहले ही झड गया.
सब लोग पंडितजी को पैसे दे कर अपनी पतलून ले कर विदा हो गए. मैं अभी तक नंगी ही बैठी थी. पंडितजी अन्दर आते हैं. मुझे नंगे देख कर कहते हैं "रानी ये क्या? क्यों मजा नहीं आया?"
"जानू तुम्हारी वाली बात ही कुछ और है"
पंडितजी तो इस बात के लिए तैयार ही नहीं थे, मुझे ही कुछ करना पड़ेगा.
मैंने पंडितजी का लंड पर हाथ लगाया, जो सोया हुआ था. धीरे धीरे सहलना शुरू किया. फिर घुटनों के बल बैठ कर धोती के ऊपर से चाटने लगी. उनके पिछवाड़े से धोती की गाँठ खोली और आगे से दूसरा बंधन खोल दिया. पंडितजी अब चड्डी में थे. ऐसे जब उनका मन होता है तो वो बिना चड्डी के ही धोती पहनते हैं पर आज बात ही दूसरी थी. मेरा हाथ पड़ते ही उनका लंड खड़ा होने लगा. उनके कमर से धीरे धीरे चड्डी सरकाई और उफनते लंड को अपने मुंह में ले लिया. कितनो को सोया लंड मेरे मुंह में आकर सांप हो जाता है और फिर ये तो पंडित जी थे. उनके लंड को लोहा बनने में ज्यादा समय नहीं लगा.

फिर बाद में पंडितजी ने खुरच खुरच का ठाप मारा. तब जा कर मेरी अग्नि शांत हुई. पंडितजी के आगे तो कोई नहीं चलता है. अबसे हर दिन चुदने के बाद भी जब तक पंडितजी से न चुद लूं, मन को और तन को शान्ति नहीं मिलती. अब हमारा जीवन सुखपूर्वक चलता है. हम दोनों पैसे कमाते हैं, काम वासना का मजा भी लूटते हैं और पैसे भी लुटाते हैं. दो सालो में ही हमारा अपना दो मंजिला मकान हो गया है.

Saturday, July 27, 2013

पिता पुत्र का व्यभिचार

मैं घर पर अकेला था। घर के सारे लोग, पापा-मम्मी, दीदी किसी शादी मे शरीक होने नजदीकी शहर गये थे। मैं इम्तिहान का बहाना बना कर नहीं गया। अब पूरा घर खाली था। मैं अब आराम से महिला वस्त्र धारण कर सकता था। रात भर इसी फैंटसी में रहा कि क्या पहनना है, इस चक्कर में मैंने कुछ नहीं किया और सो गया। सुबह उठा तो देखा पापा आये हुए हैं और कमरे में उजाला है।

'क्या हुआ, शादी में नहीं गये?' मैंने पूछा
'काम ज्यादा है, तो सबको छोड कर वापस आ गया।'

पापा क्या कह रहे थे, इसका मुझे कुछ ध्यान नहीं था। इस वक्त पापा बस पजामे में थे। कल रात मूठ भी नहीं मारा तो वासना कुछ ज्यादा ही भडक रही थी। मन में आया कि बस उठूँ और पापा का मुँह में ले लूँ। पर हिम्मत नहीं हुई। इतने में पापा डबल बेड के उस किनारे लेट कर अखबार पढने लगे। मैं अलसाया सा उठ कर उनके पाँव के तरफ सर कर के, पेट के बल लेट गया। पापा पेपर पढने में मशगूल थे। पता नहीं मेरे मन में क्या आया कि मेरे हाथ खुदबखुद उनके पजामे में सरक गया। पापा की तरफ से कोई हलचल नहीं हुई। अब मेरा हाथ उनके सोये लिंग को सहलाने लगा। तभी हलचल महसूस हूई और पापा का लौडा धीरे धीरे तनने लगा। उनका लिंग अब मेरे हाथ के घेरे में बढने लगा। बढ कर इतना बडा हो गया कि मेरे हाथो में पूरा नहीं आ रहा था। पापा अभी भी पेपर पढ रहे थे, पर मैं समझ गया ये ढोंग है। मैंने अब धीरे धीरे अपने हाथों को आगे पीछे कर के उनकों हस्तमैथुन का सुख प्रदान करने लगा। करीब ५ मिनटों के बाद पापा ने करवट ली और अब उनका तना लिंग मेरे मुँह के सामने आ गया। मैंने पापा के पजामे का नाडा ढिला किया और फिर उनका जाँघिया उतार कर अलग कर दिया। आहा, उनके झांट की क्या मादक खुशबू थी। मैं अभी भी पट ही सोया था। मैं वैसी ही स्तिथि में पापा को अब मुखमैथुन का सुख देने लगा। पापा ने एक हाथ से मेरी गांड सहलाने लगे। तबतक मैं उनका बडा लिंग अपने मुँह में लेने की कोशिश कर रहा था। मैंने पापा के टट्टे चाटे। फिर उनके लिंग को मुँह में ले लिया। करीब २ मिनट तक चुसवाने के बाद पापा ने पेपर अलग रखा। मैंने अपना सर अलग किया। हम दोनो बाप बेटे की नजर मिली।
पापा ने हल्की सी मुस्कान दी, 'रुक क्यों गये?'
मैं फिर से चूसने में जुट गया। इस बार पापा भी साथ दे रहे थे। थोडा आगे पीछे कर के उनका लिंग मेरे कंठ तक पहुँच गया। थोडी देर में मेरे नीचे वाले हिस्से में हलचल हुई। पापा ने मुझे पट से करवट वाली स्तिथि में मोड कर मेरे पैंट और चड्डी को सरका दिया। इस तरह से मेरा तना लंड अब उनके आँखो के सामने था। हमदोनों अनजाने में ६९ में थे। हम दोनो ने एक दूसरे का करीब अगले १० मिनटों तक लिंगपान किया।

फिर पापा ने हमदोनो को अलग किया।
'अब ऐसा करो कि तुम अपनी और मेरी इच्छा पूरी करो और जल्दी से साडी पहन कर तैयार हो जाओ।'

नेकी और पूछ पूछ।
पापा ने चुन कर मेरे लिये पैंटी, ब्रा, साया, साडी निकाला। मैंने वी कट वाली काली रेशम की पैंटी पहनी।
'ओह क्या मजा आ रहा है।'
मैचिंग काले रंग की ३४ बी कप कि ब्रा। पापा ने पीछे हुक लगाया और लगाते समय हल्की सी पुच्ची पीठ पर दी। मैं सिसकारीयाँ भरने लगी। फिर मैचिंग कटी बाँह की काली ब्लाउज पहन ली।
अब बारी आयी साटिन के साये की। कमर में कस कर ऐसा बांधा कि मेरी नाजुक पतली कमर बल खाने लगी। फिर साडी। साडी का एक किनारा मैंने कमर में खोंसा और एक लपेटा लिया। फिेर आराम से चुन्न बाँधी, इस पार्ट में पापा ने बडा साथ दिया। क्यों न करें, बरसों का तजुर्बा है। मुझे औरतों के कपडे पहनने का गुण भी तो पापा से ही प्राप्त हुआ है। खैर, चुन्न ले कर मैंने साडी कमर में खोंसी और आँचल को कंधे पर बाँध लिया। अब अर्ध नारी से पूर्ण नारी बनने की घडी आ गयी। पर पापा को बडी जोर से मूत्र आयी।
'मेरे मुँह मे ही कर दो ना?'
और फिर मैं पापा का सुनहरा पानी पीने लगी। खारा कसैला पानी भी आज मीठा लग रहा था। मेरा चेहरा और मेरे कपडे सब गीले हो गये। वासना फिर जोर मारने लगी। पापा ने मुझे बिस्तर पर लिटाया। मेरी दोनों टांगे ऊपर की और मेरी गांड में प्रवेश कर गये। मैं दर्द से बिलबिला उठी।
'पापा रुक जाओ. नहीं हो पायेगा।'
पर पापा नहीं रुके। ऊनका भरा पूरा बदन का भोझ मुझ पर पडा था कि मैं चाह कर भी अलग ना हो सकी। उन्होंने धीरे धीरे अपना लंड आगे पीछे लिया और थोडी देर में मुझे मजा आने लगा। पापा अपनी रफ्तार बढाते गये। मेरी सिसकारियाँ अब मजे में तब्दील हो गयी। पापा रुके और फिर मुझे कुतिया बनाया। इस बार गांड मारने के साथ साथ मुझे हस्तमैथुन का सुख भी दे रहे थे।

थोडी देर में हमदोनो झड गये। मैं साडी पहने, जो अब तक सूख चुकी थी, सो गयी।

जब उठा तो पापा ने बताया कि घरवाले अब एक महीने नहीं आ रहे हैं। फिर एक महीने पापा ने मुझे अपने घरवाली की तरह चोद चोद कर सुख दिया। इस तरह से मुझे साडी पहन कर गांड मराने की इच्छा पूरी हुई।

Friday, August 12, 2011

Sasurji ki saari



ससुरजी की साड़ी

सुहाग रात की बात है. शादी के समय से ही मेरा लंड हुमचने लगा था. मैं शर्मा रहा था की पैंट में तंबू ना बन जाए. मेरा लंड इतना कड़ा हो गया था की अब लगता था की पैंट की ज़िप फाड़ कर बाहर ना निकल जाए. सुहाग रात को मैं अपने बिस्तर पे गया. मेरी पत्नी लाल साड़ी में मूँह छुपाए लेटी हुई थी. मैने धीरे से उसका घूँघट उठाया. उस चाँद से मुखड़े को देखते ही मेरी वासना की आग और भड़क गयी. मैने धीरे से उसे चूमा, फिर हम लबों पर किस करने लगे. किस करते-करते ही मैं उसके कपड़े धीरे से उसके बदन से सरकने लगा. उसकी भारी भारी चुचियाँ हाथ में आते ही धीरे धीरे मसलने लगा. फिर मैने अपना हाथ उसकी साड़ी के नीचे से उसके पेंटी पर रखा और उपर से ही सहलाने लगा. थोड़ी देर उपर से रगड़ने के बाद मैने उसकी बुर में उंगली डाली, वो चुदासी होने लगी. एक झटके में मैने उसके साए का नाड़ा खींच कर उसे नंगा कर दिया. बस वो पेंटी में थी. उसे भी मैने सरका दिया. फिर वो मुझे नंगा करने लगी. मेरे लन्ड़ को उसने पूरा का पूरा मूँह में ले लिया. मैं 69 पोज़िशन में आ गया. अब वो मेरा लंड चूस रही थी मैं उसकी बुर. थोड़ी देर में मैं उसकी चुदाई करने लगा. वो पागल होने लगी. हम तरह-तरह के पोज़िशन में आनंद लेने के बाद दोनो तृप्त हो गये थे. अब मैने उसे कपड़े पहनने को कहा. वो साड़ी की तरफ बढ़ी मैंने उसे रोका. मैंने उसे कहा की वो मेरे कपड़े पहने—कोट, शर्ट, पैंट और मैं उसके कपड़े पहनूंगा.  उसने तो झट से मेरे कपड़े पहन लिए और तय्यार हो गयी. मुझे दिक्कत हो रही थी, मैं ब्रा और पेंटी से आगे ही नहीं बढ़ पाया. उसने मुझे साया पहनाया फिर ब्लाउज. साड़ी कैसे पहनी जाती है ये सिखाया. फिर पूरा श्रृंगार किया, लिपस्टिक, नेल पोलिश, बिंदी, चूड़ियाँ, हार—मेकप सब कुछ. दुल्हन की लाल जोड़ी में मैं बहुत खूबसूरत दिख रहा था. इतनी देर में हम दोनो फिर से गरम हो गये थे. अब मैं लेट गया, वो मेरे उपर चढ़ बैठी. उसने पहने अपने पैंट की ज़िप खोली और फिर मेरी साड़ी उठाई. उसने मेरे तने लंड को अपनी ज़िप से लेकर अपने बुर में डाल लिया. अब मैं खुद साड़ी पहन कर उसकी चुदाई कर रहा था. मैं अपने बूब्स की जगह उसके बूब्स मसल रहा था. मैने उसकी शर्ट खोली और उसके मुम्मो को चूसने लगा. इस नये सेक्स में हमें बहुत आनंद आया. झड़ जाने के बाद हम दोनो बिना कपड़े बदले ऐसे ही सो गये.
अगले दिन मेरी पत्नी शशि ने बताया की उसके लिए कपड़े बदल कर चुदाई नयी बात नहीं है, ये और बात है की कल चुदाई का ये उसका पहला अनुभव है. उसने बताया की उसके पापा यानी की मेरे ससुरजी भी साड़ी में ही सासू मा को चोदते हैं. आपको तो पता ही है की मेरे पापा भी साड़ी में ही हस्तमैथुन करते हैं. और मेरी ये आदत भी मेरे चाचा की बनाई हुई है. एक तरफ मेरा पूरा खानदान ही ऐसा है और दूसरी तरफ मेरे ससुर जी भी ही ऐसे हैं, ये जान कर मज़ा आ गया. अब मैं ससुर जी के साथ सेक्स करने का प्लान बनाने लगा. मुझे लगा इस में मेरे पापा मेरी सहायता कर सकते हैं. ये बात मैने अपने पापा को बताई और अगले दिन सामूहिक चुदाई के बाद दादा, चाचा और मामाजी को भी पता चल गयी. सबने मिलके मेरे ससुर जी को इस मनोरंजक समारोह में शामिल करने की सोची. आख़िर हम सब एक ही परिवार के सदस्य हैं तो ये ससुरजी की वेलकम पार्टी होनी थी.
एक दिन हम सब मर्दों ने दार्जीलिंग जाने का प्लान बनाया. मेरे ससुर जी राज़ी नहीं थे फिर भी उन्हे किसी तरह माना कर हम लोग चले. दार्जीलिंग में मेरे चाचा का घर है. चुदाई मचाने में कोई दिक्कत ही नहीं थी. चाचा का घर बहुत ही आलीशान था. ठंड का मौसम था,  तो शाम में हम सब बैठक में बैठे हुए थे.  फिर साड़ी की बात चलनी शुरू हुई. बनारसी साड़ी , सिल्क साड़ी , शिफ्फॉन साड़ी —कौन सी अच्छी होती है. फिर बात हुई की क्या किसी ने साड़ी पहनी भी है? मेरे ससुरजी बोलने में हिचक रहे थे, फिर मैने बता दिया की मेरे ससुरजी साड़ी भी पहनते हैं. ये सुनते ही सबने कहा की अरे सुमन, हमें भी साड़ी पहन कर दिखाओ. ससुरजी शरमाने लगे.  हमने कहा शरमाने की कोई बात नहीं सब मर्द ही हैं, कोई किसी कोई कुछ नहीं बोलेगा. उन्हे ले कर हम बेड रूम में गये. ससुरजी तय्यार नहीं हो रहे थे. तो पापा ने ससुरजी  को पीछे  से पकड़ा और मामा जी ने उनकी पैंट उतरनी शुरू की. मेरे चाचा और दादा साड़ी का सेट ले कर आ गये और मैं वीडियो बनाना लगा. चड्डी उतार कर मामा ने उनके लंड को रगड़ा जो अभी सोया हुआ था, रगड़ने से ससुरजी का खड़ा होने लगा. मामा ने फिर उनका लंड मुँह में लिया और चूसने लगे. इस पर पापा ने कहा की अरे साली, लंड ही चूसती रहेगी या कपड़े भी पहनाएगी.
मामा ने ससुरजी की टांग पकड़ी और पापा ने उनकी शर्ट उतार कर पूरा नंगा कर दिया. फिर दादा और चाचा की मदद से उन्हे ब्रा, ब्लाउज  पहनाई. उनके ब्रा को खूब भर कर फूला दिया. फिर पेंटी पहनाई और फिर साया पहनाया. ससुरजी मारे शरम और गुस्से के लाल हो रहे थे. फिर सबने उन्हे साड़ी पहनाई. इतना करने के बाद, अब मेरे मामा की बारी थी. वो भी अपने गेट-उप में आ गये. उनकी पीली साड़ी ममाजी पर फब रही थी. ये देख कर मेरे ससुरजी हैरान रह गये की कोई और भी साड़ी पहनता है. इतने देर में सब मर्द साड़ी पहन कर औरतों की ड्रेस में आ गये. सबको अपने जैसा जान कर ससुरजी खुल गये और उनका गुस्सा भी शांत हो गया. लेकिन वासना की आग सब की और भड़क गयी थी. हमें मालूम था की ससुरजी का ये पहला अनुभव है तो उन्होने गांड नहीं मराई होगी और हमारा आज का यही काम था की उन्हे गांड चुदाई का आनंद दिया जाए. जैसा की अक्सर होता है की सब को अपनी गांड देने में फॅट जाती है तो ये काम भी मुश्किल ही था. सबसे छोटा लंड ममाजी का होने के कारण उन्हे पहले मौका मिलना तय था. मैने ससुरजी की साड़ी के अंदर हाथ डाल कर उनका लंड सहलाने लगा. उनका इतना कड़ा था की कहीं छलक ना जाए यही डर था. मैं उनके लंड को चूसने लगा, मेरे मामा उनकी गांड चाटने लगे.  मेरे पापा, चाचा और दादा आपस में झगड़ रहे थे की पहले अपना लंड कौन चुस्वाएगा. ससुरजी तो लेने से माना कर रहे थे लेकिन दादाजी  माने नहीं. बड़े होने के कारण पहला हक़ उनका बना. अपनी साड़ी उठाई और पूरा उनके गले तक डाल दिया. ससुरजी चिल्ला तक नहीं पाए. कंठ तक लंड घूसा हुआ था. और नीचे उनके लंड को मैं गांद को मामा चाट रहे थे.  पापा चाचा फ्रेंच किस में मशगूल थे.  ससुरजी को कुतिया वाली पोज़िशन में कर के ममाजी ने ढेर सारी वॅसलीन उनकी गांडमें लगाई और अपना लंड उनकी गांद में दे दिया. ससुरजी की क्या हालत होगी ये तो वही जाने. ना मूह से चिल्ला पाए ना ही गांद से लंड निकल पाए. दादाजी ने कासके सर पाकर रखा था और ममाजी ने कमर.  थोड़ी देर में उन्हे मज़ा आने लगा जो चेहरे से झलकती थी.  अब मेरी बारी थी. मैं उन्हे ब्लो जॉब देने लगा. तभी मेरे गांद दर्द करने लगी, क्यों ना हो, आख़िर मेरे चाचा ने अपना लंड जो दे रखा था. चाचा पापा का लंड चूसने के साथ साथ मेरी गांद भी मार रहे थे.


सारे झाड़ जाने के बाद लेट गये. थोड़ी देर में सब नॉर्मल हो गये. तभी मामा ने कहा “सुमन, अपनी बेटी छोड़ोगे?”, ये सुनते ही मैं चौंक गया, आख़िर मेरी बीवी की चुदाई की बात हो रही थी. पापा ने भी कहा, “हन सुमन, मेरी बहू का नंबर सब मर्दों के साथ लगना है, तुम चाहो तो जाय्न कर सकते हो”. “पापा, ये आप क्या बोल रहे हैं?” “बेटा, ये तो तुम्हारे घर की रीत है, तुम्हारी मम्मी तो दादा से चूड़ी थी, तुम्हारी चाची मुझसे और दादा से चूड़ी, अब तुम्हारी बीवी की बारी है.” “ये तो ग़लत है. मुझे भी तो मौका  मिलना चाहिए.” “तो तुम्हे क्या चाहिए?””मामी की तो मैं ले चक्का हून. चाची, मम्मी और सास की भी तो मिलनी चाहिए.” “तो बêते, मा और चाची तो मिल जाएगी, अगर सास चाहिए तो ससुर को राज़ी करो.” “ससुर जी को तो मैं बीवी क्या अपनी गांद दे सकता हून.” ये सुनते ही ससुरजी खुश होगआय. “बेटे तुम्हारी भारी गांद देख कर तो मेरा लंड खड़ा होने ही लगता है. तुम ससुमा की चिंता ना करो. वो तो तुम्हे ऐसे ही मिलने वाली थी. मुझे बताए या बिना बताए वो तुझसे छुड़वा ही लेती.”
“तो फिर बीवियों की अदला-बदली कब होगी?” “आपकी बहू आपको पहुँचते ही मिल जाएगी, मेरी अम्मा का इंतेज़ां कर दो.” “तो फिर सोचने की क्या बात है, आज ही बुलवा लेते हैं.”
तार मिलते ही घर की सारी औरतें आ गयी. सब को लाने के लिए मैं स्टेशन गया. सबने पूचछा की बाकी मर्द कहाँ हैं. मैने कहा “आपका इंतेज़ार हो रहा है घर पर, सर्प्राइज़ मिलेगा.” घर की सारी औरतें अपने मर्दों के सारी पहनने के बारे में जानती हैं. लेकिन घर के सब मर्द औरत बनने के शौकीन हैं ये नहीं जानती थी. घर को मैने बाहर से लॉक कर दिया था. औतिए को लगा की घर पर कोई नहीं हैं. वो सब की सब उपर कमरे में गयी. कमरे में घुसते ही सब मर्दों को सारी में देखते ही चौंक गयी. फिर मारे खुशी के चिल्लाने लगी. मैं जो की नीचे था, झट से मैं डोर लॉक कर के उपर आ गया. फिर कहा, “क्यों आंटी, कैसा लगा सर्प्राइज़?” “बहुत अच्च्छा, लेकिन तुम तो अभी भी मर्दों के कपड़े में हो?” “तो फिर आप ही मेरा श्रीनगर कर दो.” सुनना ही बाकी था की सब औरतें मुझे नंगा करने में जुट गयी. मेरी बीवी अपने साथ मेरे लिए नयी सारियाँ ले कर आई थी.

Tuesday, July 12, 2011

sas bani humraaz

मेरी नयी नयी शादी हुई है. शादी को अभी ४ महीने भी नहीं बीते हैं, और मेरे पतिदेव ने मेरे साथ अभी १५  दिन भी नहीं बिताये हैं. लोक लाज के भय से अभी तक कुंवारी बैठी थी. सुहागरात को पता चला सेक्स इतना मजेदार होता है. इन १५ दिन में मैं कुल मिला कर ६ दिन ही चुदी थी. इनका पता नहीं कैसा कारोबार है, बाप बेटे दोनों गायब रहते हैं. पता नहीं सासु माँ ने अपनी जिंदगी कैसे बितायी. खैर मुझे तो ये मेरी सास के पास छोड़ गए हैं. पर पता नहीं क्यों मुझे लगता है की सासु माँ कुछ ज्यादा ही मेरे जिस्म से छेड़ छड करती हैं. कभी किसी काम से कभी किसी और काम से उनका हाथ कभी उनकी ऊँगली उनका पाँव मेरे जिस्म का नाप लेने के लिए तत्पर रहता है. कभी मेरे बूब्बे दब जाते हैं हैं, कभी बस सहला कर छोड़ दिए जाते हैं. 
एक दिन सासू माँ ने पानी ले कर कमरे में बुलाया. "अरी, आ गयी बहु? कुछ और काम बचा है क्या? खाना वाना बना लिया क्या?"
"हाँ सासू माँ, सब काम हो गया है. बस लेटने ही जा रही थी. कोई और काम है क्या?"
"अरी नहीं. अब लेटने ही जा रही है तो आ, थोड़ी देर बात कर लेते हैं. बहुत दिनों बाद समय मिला है."
थोड़ी देर इधर उधर की बातें होती रही जो घूम फिर कर शादी की बात पर आ गयी.
"बहु, तू खुश तो है न? इतने दिन हो गए हैं, तुझे अपने पति की शकल देखे, कुछ अकेला सा नहीं महसूस करती?"
"सासू माँ, मैं ठीक हूँ, बस कभी कभी लगता है कि ये कुछ जल्दी जल्दी घर आ जाते तो अच्छा होता. थोडा अकेलापन तो लगता है. ससुरजी भी नहीं रहते, अपने अपनी ज़िन्दगी कैसे गुजारी?"
"बेटी तू तो बड़ी गहरी बात पूछ लेती है. पहले अजीब सा लगता था, फिर काम में मन लगा लो, तो कुछ नहीं लगता है."
फिर मैं गिलास लेकर बहार जाने के लिए कड़ी हुई थी कि
"खैर ये सब कहाँ की बातें ले कर बैठ गयी. देखूं तेरा मंगलसूत्र कैसा है?"
यह कह कर उन्होंने मेरे गले से मंगलसूत्र निकालने की प्रक्रिया करी. मेरा मंगलसूत्र थोडा लम्बा था तो वो गले से नीचे मेरी गोलाइयों में अटका था. वो थोडा अटक रहा था तो सासू माँ ने ब्लाउज के अन्दर हाथ डाल दिया, और फिर गलती से उन्होंने मेरे बूब्बे दबा दिए. 
"सासू माँ ये क्या?"
"अरी तुझसे क्या छुपाना? तुझे अच्छा नहीं लगा?"
"मैं समझी नहीं अम्मा?"
"मैं समझती हूँ." यह कह कर सासू माँ ने मेरे ब्लाउज का बटन खोल दिया और मेरे उरोजों को हलके हलके दबाने लगी. मेरे कान में फुसफुसा कर बोलीं "तेरे टेनिस बॉल जैसा खड़ा देख कर तो मेरा पहले दिन से मन टीपने को कर रहा था."

"पर सासू माँ ये गलत है"
"क्या गलत बहू, जब गर्मी बढ़ जाये तो कुछ गलत सही नहीं रहता."
"पर..." मैं कुछ और कहने वाली ही थी की सासू माँ ने मेरे होठ पर अपने होठ रख दिए. वो उनको बेतहाशा चूमने लगी. उनका एक हाथ बराबर मेरे बूब्बे टीप रहे थे और दूसरा हाथ मेरे हाथ को उनके बूब्बे के तरफ बाधा रहे थे. उनके बूब्बे तो उतने कसे नहीं थे, पर फिर भी उमर्गर औरतों से ज्यादा गठे थे. मेरे दोनों हाथ अब उनके बूब्बे टीप रहे थे, और उनका हाथ मेरी साड़ी के अन्दर जा रहा था.  मैं उनको रोकने के लिए बढ़ी, पर सासू माँ ने फिर से उन्हें उनके बुब्बों को दबाने के लिए वापस रख दिया. एक तो मैं गरम हो रही थी, ४ महीने के बाद ऐसा कुछ हो तो मन नहीं मान रहा था. सासू माँ का हाथ अब तक मेरी पैंटी के ऊपर था. वो ऊपर से ही मेरी चूत रगड़ने लगी.  मैं अब अपना होश खोने लगी थी. मुझे दुनिया जहाँ की कोई फ़िक्र नहीं थी अब. सासू माँ भी पूरे जोश में आ गयी थी. अब उन्होंने मेरे साए का नाड़ा खींच दिया, जिससे मेरी साड़ी एक झटके में उतर गयी. मैं बस ब्लाउज पैंटी में थी. सासू माँ ने भी अब अपने कपडे उतार दिए. वो पूरी नंगी हो गयी. फिर उन्होंने मेरी पैंटी और मेरे ब्लाउज ब्रा भी उतार दिए. अब मैं अपने बूब्बे खुद टीप रही थी और सासू माँ मेरी चूत को चाटने लगी. जीभ से उन्होंने मेरी पूरी चूत का मुआयना कर डाला. मैं हलकी हलकी सिस्कारियां भरने लगी. 
"बहू अब तू बिस्तर पर लेट जा, मैं ड्रेसिंग टेबल से क्रीम लाती हूँ."
मैं नंगी बिस्तर पर लेट गयी, और अपनी चूत में ऊँगली करने लगी. सासू माँ क्रीम लेकर वापस आई. उनके हाथ में एक डब्बा भी था. सासू माँ ने मेरी चूत पर खूब सारा क्रीम मला. "बड़ी टाईट चूत है तेरी. कितनी बार चुदी है?" "कहाँ अम्मा, ४-५ बार ही तो मौका लगा है." "फिर तो बढ़िया है, इस टाईट चूत का मजा मैं भी ले लूंगी."
यह कह कर सासू माँ ने डब्बे में से एक कित्रिम लौड़ा निकला. इस लौड़े के साथ एक बेल्ट भी था, जिसे सासू माँ ने अपनी कमर पर पहन लिया, अब सासू माँ के लौड़ा भी था और चूचियां भी. मेरी चूत कि तरफ अपना लौड़ा सीध में रख कर एक झटके में मेरी चूत को फाड़ दिया. "आह नहीं, ओह, ओह, नहीं सासू माँ मैं मर जाऊंगी, प्लीज़ ये चीज़ बहार निकल लो." "अरी रंडी, अब क्या शर्माना. अगर मेरा बेटा तेरी चूत नहीं फा सका तो क्या, तेरी चूत का भोसड़ा उसकी माँ बना देगी." ये कह कर उन्होंने गन्दी गन्दी गलियां सुनानी शुरू कर दी.
"अरी बापचोदी, रंडी, भईचोदी, तुझे तो मैं घोड़ों से चुद्वऊंगी, घोड़ो से क्या, तुझे तो तेरे ससुर से भी चुद्वऊंगी. उनका लंड तो इससे भी बड़ा है. छिनाल, तुझे तेरे ससुर कि रखैल बना डालूंगी. मुझे जान ले, मैं तेरी सौत हूँ, मेरा बेटा मादरचोद, मुझे चोदता है, तुझे भी मैं अपनी सौत बनाऊँगी. " ये कहते हुए वो मेरे चूतडों पर चपत लगते हुए अपनी स्पीड बढ़ा देती है. मैं दह जाती हूँ, पर मेरी सास को तो जैसे आग लगी थी, मुझे कुतिया बना दिया. फिर से मेरी गांड में खूब सा क्रीम लगाया. अबकी उनके पास दो मुँहा लंड था. एक सिरा मेरी गांड में डाल दिया, दूसरा खुद अपनी चूत में ले कर बैठ गयी. पेल पेल कर मेरी गांड भी फाड़ डाली. मैं दूसरी बार दह गयी.  इस तरह कर के मेरी गांड भी चोद डाली. पर जो भी हो, ये था बहुत मजेदार.
"क्यों बहू मजा आया?"
मैं शर्मा गयी.
"क्यूँ री, अब तुझे पता चला, मैं कैसे गुजारा करती हूँ? मेरी सास ने मुझे सिखाया था, फिर मेरी ननद और नंदोई बड़ी मदद करते हैं."

पर यह बात हम दोनों के बीच ही नहीं रही. सासू माँ सच कह रही थी. मेरे पति तो मादरचोद निकले. उधर मेरे ससुर का बड़ा लौड़ा सुन कर तो मेरे मुंह में पानी आ गया. मैं बड़ी बेसब्री से अपने ससुर का इंतज़ार कर रही थी. इस के लिए मुझे ज्यादा दिन ठहरना नहीं पड़ा. २ दिन के बाद ही ससुरजी और मेरे पतिदेव आ पहुंचे. जहाँ ससुर के आने से मैं प्रसन्न थी, वही पति के आने से घबडा गयी. ये देख कर सास ने कहा, "अरी घबडा मत, सब का इंतज़ाम है मेरे पास. तू चिंता न कर, बस मेरे इशारे पर आ जाना."
उस दिन रात को सब भरे पड़े थे, ख़ास कर मेरे पति. अगर वो मेरी तरह चुदक्कर नहीं है तो पक्का नयी शादी की विरह झेल नहीं प् रहे होंगे. जैसा सोचा था वैसा हुआ. रात को खाने के बाद वो सीधे कमरे में आ गए. उनका लौड़ा तो लोहे कि तरह तना पड़ा था. दरवाजा लगा कर सीधे मेरे कपडे उतारने लगे. मैं तो पजामे से ही उनका तम्बू देख चुकी थी. दोनों नंगे थे, मुझे वो मुंह में लेने के लिए कह रहे थे, मुझे ऐसा करने में घिन आ रही थी. इतने में सासू माँ कि आवाज़ आई, "अरी बहु, ससुरजी को खिला दिया क्या?" और दरवाजे को खोल कर अन्दर आ गयी. 
मेरे पति बोले "माँ, ये क्या?"
सासू माँ ने कहा, "अरे कोई बात नहीं, मैं भी शामिल हो जाती हूँ." ये कह कर वो भी कपडे उतारने लगी.
मुझे न चौंकते हो देख कर मेरे पति चौंक गए, "तुम्हे पता है?" 
इस बात का जवाब मेरी सास ने दिया, "हाँ इसे पता है, तू कैसा गांडू आदमी है रे, तुझसे इसकी चूत भी फाड़ी नहीं जा सकी. देख मैंने इसको कैसा टंच माल बना दिया. एक दम रसीली चूत."
"पर माँ, ये तो मुंह में लेने से मना कर रही है."
"तो लंडूरे, ये भी अपनी माँ से कराएगा? ला मैं सिखाती हूँ."
"पर सासू माँ अगर आप इनका लोगी तो मैं कैसे सीखूंगी?"
"अरी तेरे ससुरजी हैं न दरवाजे पर, उनका लंड ले कर देख, फिर कभी नहीं भूलेगी."
इतना कहना था कि ससुरजी लुंगी में अन्दर आ गए. उन्होंने लूंगी उतार दी, और सच में उनका लौड़ा तो इनसे बड़ा था. इनका ७" का उनका ८-८.५" का था. "माँ, इतना बड़ा कैसे लूंगी"
"अरी, जब लेगी तो छोड़ेगी नहीं, पर तू घबरा मत, तेरे पति का भी कुछ दिनों में इतना ही बड़ा हो जायेगा, फिर तू दोनों से चुद्वाती रहना."
सासू माँ ने पहले अपने बेटे का सूपड़ा चाटा, मैं भी उनका अनुकरण करते हुए, अपने ससुर के लंड का सूपड़ा चाटने लगी. फिर सासू ने अन्डो को चाटने चूसने लगी, मैं तो लोलीपोप कि तरह चूसने लगी थी. फिर सास ने लौड़ा मुंह में लिया. ससुरजी का लौड़ा बड़ा था, वो पूरा मुंह में ही नहीं आ रहा था. ससुरजी तो मुन्ह्चोदी में माहिर थे, मैं पूरा नहीं ले पा रही थी तो उन्होंने मेरा सर पकड़ा और सीधे मेरे कंठ में अपना लंड पेल दिया. वो छोड़ ही नहीं रहे थे. थोड़ी देर मुन्ह्चोदी के बाद उन्होंने अपना लंड निकला और मुझे बेड पर फेंका, उधर सास पहले से चुदाने में मशगूल थी. मुझे तरीके तरीके से चोदा गया.

के लिए कहा गया. हम दोनों एक दुसरे को चूमने लगे, पर तभी मेरा ध्यान बाप बेटे पर गया. वो दोनों भी एक दुसरे को चूम रहे थे. मेरे ससुरजी मेरे पति का लंड हिला रहे थे और मेरे पति उनका. फिर मैं और सासू माँ ६९ में आकर एक दुसरे की चूत चाटने लगे, तो दोनों बाप बेटे भी एक दुसरे का लंड चूसने लगे. बाप रे दोनों लंड चूसने में क्या माहिर थे. दोनों तो ऐसे चूस रहे थे कि बरसों कि प्रक्टिस हो. इस पर सासू ने कहा, "अरी, ये दोनों तो पुराने ज़माने के आशिक हैं. बचपन में एक बार इसने मुझे तेरे ससुर से चुदते हुए देख लिया था. मैं तेरे ससुर का चूस रही थी, इसे भी अच्छी लगी, तो ये भी चूसने लगा. मैं बहुत दिनों तक तेरे ससुर को गांड नहीं देती थी, तो इसकी साड़ी प्रक्टिस तेरे ससुर ने तेरे पति पर निकाली है. पर मेरा बेटा भी कच्चा खिलाडी नहीं है. १८ का होते होते, अपने बाप कि भी गांड मारने लगा था. विश्वास न हो तो खुद देख लेना."कहा गया.
अगले दिन भी chudai समारोह हुआ, पर इस बार, सास-बहु को एक दुसरे को चोदने 

मेरे पति ने मेरे ससुर को घोड़ी बनाया और उनकी गांड में अपना लंड पेल दिया. मैं ससुर के नीचे आ कर उनका चूसने लगी और सासु माँ मेरा चूसने लगी थी.  थोड़ी देर कि चुदाई के बाद बाप बेटे ने adla badali की और इस बार ससुरजी ने मेरे पति की गांड चोदनी स्टार्ट की. ऐसे फर्राटे से गांड मार रहे थे कि मैं जो अब इनसे चुद रही थी, उनके धक्कों का असर महसूस  कर रही थी. ऐसा लग रहा था कि ये नहीं ससुरजी ही चोद रहे हैं. थोड़ी देर में सब दह गए. और इस काम पिपासा कि बांसुरी, अब भी बज रही है. 

Saturday, July 9, 2011

Just for comments

Hi readers, if you want new stories, if you have new ideas for stories, drop here a comment, I will write a new story. Right now I am writing a story of incest involving uncle aunt, dad mom and daughter. It is a straight sex story "Kaam Pipasa ki bansuri".

Saturday, April 9, 2011

दादाजी ने शील भंग किया

Dadaji ne Sheel Bhang Kiya


बात तब की है जब मेरे दादाजी की उम्र करीब ५० की थी, उनका ब्याह दादीजी से बहुत कम उम्र में हो गया था. दादीजी खुद 48 की thi. मेरे पिता 33 के थे और मेरी माताजी का तो बस बत्तीसवां लगा था. मेरी उम्र का मुझे याद नहीं, आप खुद अंदाजा लगा लो. वो मेरा पहला अनुभव था.
बैठक में बस मैं दादाजी और दादीजी थे. दादीजी घर का काम करने में व्यस्त थीं. दादाजी और मैं टी.वी. देख रहे थे. दादाजी ने थोड़ी पी रखी थी. उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और बगल में बिठा लिया. 
मैं टी.वी. देखने में मशगूल थी और दादाजी का हाथ कब मेरी स्किर्ट के नीचे मेरी चड्डी तक गया पता नहीं चला. दादाजी ने चड्डी सरका कर धीरे धीरे मेरी बुर पर ऊँगली रगड़ने लगे. मैं गरम होने लगी थी. दादी का कहीं पता नहीं था.
मैंने दादाजी की तरफ देखा, दादाजी ने झट से मेरे लबों पर एक किस जड़ दिया. मैं भी उनका साथ देने लगी. दादाजी ने अपने जीभ से मेरी जीभ चाटने लगे. हलके हलके मेरे होंठों को चबाने लगे. 
एक हाथ से उन्होंने अपने पैंट की जिप खोली, और मेरे हाथों को अपने चड्डी पर रख कर सहलाने का इशारा किया.  उनका हथियार तो करीब ६-६.५" इंच लम्बा होगा. मैं उनके लंड को सहलाने लगी.
उनका दूसरा हाथ मेरी पीठ पर सरक रहा था. उनका हाथ सरकते सरकते मेरी गर्दन तक पहुंचा और फिर उन्होंने मेरा सर अपनी लंड की तरफ झुकाया, जो अब तक तन कर लोहे की तरह मजबूत और खड़ा हो चुका था. एक झटके से उन्होंने मेरे मुंह में अपना लिंग दे दिया. उनका लिंग मेरे अंदाज़ से कहीं बड़ा था. ७.५" इंच के लंड को मैं कंवारी कहाँ ले पाती. लेकिन उस झटके से उनका लिंग सीधे मेरे कंठ तक आ पहुंचा. दादाजी मेरा मुंह आगे पीछे कर के मुख मैथुन का मजा ले रहे थे. दोनों हाथों से मेरे सर को आगे पीछे कर के करीब ३-४ मिनट तक मजा लिया. इसके बाद उन्होंने मुझे आजाद किया. मैं खड़ी हुई की एक चपत मेरे गांड पर पड़ी. मैं तिरछी क्या हुई, एक झटके में मेरी पैंटी खींच दी. फिर मुझे पैंटी के बंधन से आजाद कर के मुझे अपनी गोद में बैठने का इशारा किया. मुझे टांगे फैला कर अपने लंड पर बैठा लिया. उनका लंड सीधे मेरी बुर को चीरता हुआ, अन्दर चला गया. मैं चिल्लाने वाली थी लेकिन उन्होंने एक हाथ से मेरा मुंह बंद कर रखा था. फिर मेरी कमर को उठा उठा कर मुझे चोदना शुरू कर दिया. थोडा दर्द हो रहा था, लेकिन फिर मजा आने लगा. दादाजी ने भी मेरी चूचियां  जो अभी बस थोड़ी ही बड़ी थी, उसे दबाने लगे, थोड़ी देर में जो मसलने लगे, उस आनंद की क्या बात करून, मैं बस चरम पर पहुँचने वाली थी, मैं आंखे बंद कर के झड़ने वाली ही थी की, दरवाजे की खटपट से मैं और दादाजी दोनों रुक गए. दादीजी मुख्य द्वार बंद कर के इस तरफ आ रही थी. अब तो मेरी हालत ख़राब हो गयी. इस अवस्था में पकडे जाने का कभी सोचा नहीं था. जब चुदाई शुरू की थी, तब तो सोचा भी नहीं था. लेकिन जो हुआ वो कभी सोचा नहीं था. 
"आओ जानेमन, तुम भी अपने पोती के साथ शामिल हो जाओ."
"बड़े कमीने निकले तुम तो. शर्म हया को क्या हो गया? कभी सोचा भी की घर की इज्जत का क्या होगा?"
"इतना गुस्सा क्यों हो रही हो? अपनी पोती ही तो है. थोड़ी सी चुदाई कर ली तो क्या हो गया?"
"इतना करने की जल्दी मची थी तो कमसे कम दरवाजा तो लगा लेते."
यह सुनते ही मैं खुश हो गयी. दादीजी की रजामंदी थी ही. दादीजी ने कहा, "तुम्हे कुछ ख्याल नहीं की बच्चों को सेक्स ज्ञान कैसे देते हैं? मैं सिखाती हूँ."
दादीजी मुझे दादाजी की गोद से उतरा. फिर मेरे सारे कपडे उतर दिए. मैंने पैंटी तो वैसे ही उतार दी थी, ब्रा नहीं उतार थी. उधर दादाजी दादी के कपडे उतार रहे थे. उतारते उतारते वो दादीजी को यहाँ वहां चूम रहे थे. दादीजी मेरे चूचियां हलके-हलके मसलनी शुरू की. मुझे पलंग पर लिटा कर एक हाथ से एक चूची मसली और दूसरी चूची चूसनी शुरू कर दी. दुसरे हाथ की दो उँगलियों से मेरे चूत को चोदना शुरू कर दिया. तब तक दादाजी भी नंगे हो कर दादीजी चूत चाटने लगे थे. 
फिर दादीजी ने मुझे उनके साथ वैसे ही करने के लिए कहा. अब मैं उनका स्तनपान कर रही थी, और दादीजी दादाजी के लंड का स्वाद ले रही थी. थोड़ी देर के बाद, दादीजी कुतिया स्थिति में आ गयी. मुझे सामने बिठा कर मेरे बुर को चूसने लगी, और दादाजी ने उनके पीछे से अपना वार चालू किया. करीब १५ मिनट तक चोदने के बाद दादाजी ने कहा," जानेमन अब मैं झड़ने वाला हूँ, तैयार?" इस पर दादीजी अपनी चूत से लंड निकलवा दिया और कहा, "आज तो इसकी बारी है, हर बार तो मैं चुदती हूँ ही, इस लड़की को भी इसके यौवन का एहसास दिला दो."
मैं ख़ुशी ख़ुशी, अपने बुर में दादाजी का लंड लेने को तैयार थी, मैं और दादाजी एक ही साथ झड गए. दादाजी का पूरा पानी मेरे बुर में ही बह गया. मेरे बुर से खून और वीर्य दोनों बहने लगे. उसे दादीजी चाट चाट कर साफ़ करने लगी, मैं उनकी बुर चाटने लगी, तब उनकी बुर ने भी पानी छोड़ दिया जो मेरे मुंह में आ गया. उनका पानी बड़ा ही नमकीन था. उनके बलरहित चूत की क्या बात थी. सब तृप्त हो गए थे.

बाद में दादाजी ने मुझे पैंटी पहनने से मन कर दिया. इस तरह वो जब चाहे मुझे चोद सकते थे.
इस कामक्रीड़ा के बाद मुझे लगा की अब मम्मी-पापा आयेंगे तो उन्हें क्या लगेगा? मैंने सोचा की उन्हें बताया ही न जाये.
रात में खाने के टेबल, पर दादाजी अत्यधिक प्रसन्न नज़र आ रहे थे. मैं उनकी बाजु वाली कुर्सी पर थी. उनका हाथ अब भी मेरे पैंटी रहित चूत पर फिर रहा था.
"क्या बात है बाबूजी, कोई सोने की चिड़िया हाथ लग गयी क्या? बहुत खुश हो आज?"
अरे बात ही कुछ ऐसी थी. तुम्हे आने वाले कुछ दिन में पता चल जायेगा.

उस बात को करीब एक महीने हो गए थे. रोज की तरह दोपहर में मैं दादाजी और दादीजी रंग-रेलियाँ मन रहे थे. किस्मत की बात थी की उस दिन मम्मी-पापा दोनों वापस आ गए. दरवाजे का ताला खोल कर वो सीधे ही उस कमरे में आ गए जहाँ मेरी चुदाई चल रही थी.
"आओ बहु, आज तुम भी अपने बेटी के साथ चुदाई मना लो."
"क्या बाबूजी, कम से कम इस नाजुक कली को तो छोड़ दिया होता."
"अरे अब ये नाजुक कली तो फूल बन चुकी है, चाहो तो तुम भी इसका मुआयना कर सकती हो."
दादीजी ने कहा,"हाँ बहु, ये तो कब की फूल बन चुकी है, यही है तुम्हारे बाबूजी की सोने की चिड़िया."
इस बात चीत के दौरान ही मेरे पापा नंगे हो चुके थे. उनका निशाना तो दादीजी का बुर था. दादाजी ने मुझे अपने से अलग कर के मेरी माँ का वस्त्र हरण किया. उधर पापा अपनी माँ पर अपना जौहर दिखा रहे थे, और मैं अपनी  माँ का चूत चाट रही थी. तब दादाजी ने माँ की चूत मारी, फिर उसकी गांड भी मारी, माँ ने मेरी ऊँगली कर के मेरा पानी निकाल दिया.
तब से हम घर के लोगो में कोई पर्दा नहीं है. जो जब जी चाहे चुदाई मचा सकता है. माँ मेरे गर्भ ठहर जाने के डर से मुझे रोज गोलियां खिलाती है. उनका आईडिया था की मैं कंडोम उसे करू, पर मन नहीं माना. इसीलिए बस गोलियों से काम चलाती हूँ. मेरी दिली इच्छा है की मैं अपने बाप या दादा के बच्चे की माँ बनू. अभी कुछ दिनों में मेरी शादी होने वाली है, मैं अपने होने वाले को भी उसके बाप दादाओं से चुदवाऊन्गी.

Monday, March 21, 2011

dadaji se chuda

दोस्तों, मेरे दादाजी बड़े हॉट हैं. कोई 65-70 के हो रहे हैं. लेकिन दिल उनका अभी भी जवान है. जब गांड मारते हैं तो   अच्छे-अच्छे पहलवान भी पानी मांगते हैं. थोड़े तोंदियल हैं, हृष्ट पुष्ट शरीर है, और अपने गाँव के अधिकतर पुरुषों की गांड मार चुके हैं. दादीजी के गुजर जाने के बाद तो कितनी महिलाओं की चूत मारी है. मगर ये सब मुझे तब पता चला जब दादाजी मुझे पर पहली बार सवार हुए. ऐसी गांड मारी थी की मुझसे २ दिन तक चला नहीं गया.

हुआ यूं कि दादाजी गाँव से हमारे घर आये हुए थे. मैं माँ बाप कि एकलौती संतान हूँ, मम्मी-पापा दोनों जॉब करते हैं. मुझे स्कूल से लेने दादाजी ही आते थे. ५-६ दिन हुए थे दादाजी को आये हुए. अब न तो उन्हें गांड मिली न ही चूत , तो बड़े परेशान रहते थे. ऐसे में बस मैं ही एक था जिसका वो शिकार कर सकते थे. उस दिन मुझे स्कूल से लाने के बाद बोले कि "बेटे, आज कुछ अलग करते हैं. आज तक तूने बस शर्ट पैंट ही पहना है. आज कुछ नया पहन कर देख". "क्या दादाजी?" "चल आज तुझे एक नया वस्त्र पहनाऊ, कभी धोती पहनी है?", "नहीं." चल आज तुझे धोती पहनाऊ."
दादाजी ने कहा, "चलो अपने कपडे उतार, तब तुझे धोती पहनाऊ." मैं तो कपडे उतार का नंगा हो गया. पर तब दादाजी एकटक मुझे देखे जा रहे थे. मेरा दुबला पतला शरीर बस कुछ ही दिनों बाद उनका होने वाला था. दादाजी ने मुझे धोती पहनाई. मुझे खुला खुला बड़ा अच्छा लगा. "दादाजी, ये खुला खुला बड़ा अच्छा लगता है. कोई और ऐसे कपडे हैं?" "हाँ होते हैं, लेकिन फिर तू उसे पहन कर बाहर नहीं जा सकता." "कोई बात नहीं, मैं घर में ही पहनूंगा." "लेकिन वो तो गाँव वाले घर पर हैं. तू चलेगा गाँव?" "हाँ दादाजी अगले हफ्ते से मेरी गर्मी की छुट्टियाँ होने वाली हैं. मैं चलूँगा गाँव."

अगले पूरे हफ्ते स्कूल से आने के बाद मैं धोती ही पहनता था. हफ्ते ख़तम होने के बाद मैं गाँव चला आया दादाजी के साथ. उस दिन रात में, दादाजी ने खाना खाने के बाद मुझे बुलाया. लैम्प कि हलकी रौशनी थी. दादाजी ने कहा, "बेटे नए कपडे पहनने हैं?" "हाँ दादाजी." "तो चलो फिर, कपडे उतारो." कहने कि देरी थी और मैं नंगा हो गया.
दादाजी ने पैंटी निकली और मुझे पहनाया. फिर एक ब्रा निकला और मेरे छाती पर पहनाया. स्तन कि जगह मेरे उतारे कपडे ठूंस दिए. मुझे बड़ा अजीब लगा, जैसे कि मैं लड़का नहीं, लड़की हूँ. फिर दादाजी ने मुझे साया पहनाया, और फिर एक साड़ी निकली. "दादाजी, ये आप क्या कर रहे हो, ये तो साड़ी है, जो मम्मी पहनती है." "हाँ, पहन कर देख, धोती से ज्यादा अच्छी है, इसीलिए ये मर्दों को नहीं मिलता. सारी अच्छी चीज़ तो औरतें ले लेती हैं."
साड़ी का कोना मेरे साए में खोंस कर, फिर एक लपेटा दे कर दादाजी ने चुन बाँधी. फिर उसे भी खोंस कर बचा आँचल मेरे कंधे पर दिया. फिर मुझे गोद में उठा कर पलंग पर ले गए और कहा, "देख अब तू किसी को कुछ नहीं बताना, वरना मैं सबको बता दूंगा कि तू साड़ी पहनता है." फिर उन्होंने में साड़ी उठाई और फिर मेरी नुन्नी को चाटने लगे. मेरे नुन्नी में हलचल होने लगी. थोडा बहुत तो सेक्स के बारे में तो मुझे दोस्तों से भी पता था. मैंने भी दोस्तों के साथ मुठ मारी थी, लेकिन ये नया अनुभव था. दादाजी के चाटने से मेरा भी लिंग खड़ा हो गया. अब दादाजी उसे चूस रहे थे. मुझे मजा आने लगा, मैं आवाजें निकलने लगा. मुझे मजे में देख कर दादाजी ने एक ऊँगली मेरी गांड में दे दिया. आआआआअह क्या मजा आ रहा था. अब दादाजी ने चाटना छोड़ कर मेरे निप्पल मसलने लगे. फिर मेरे मुंह में अपनी जीभ डाल कर किस करने लगे. मैं मजे के मारे बेहाल होने लगा. थोड़ी देर कि किस के बाद, दादाजी मेरी गांड चाटने लगे. फिर जब मुझ से रहा नहीं गया, तब उन्होंने अपना सर मेरी साड़ी में डाल कर मेरे लिंग को जोर जोर से चूसने लगे. मेरा तो मूठ निकल गया. दादाजी उसे चाट कर साफ़ कर दिया. फिर मुझे बाहों में लेकर अपनी धोती के ऊपर मेरी गांड रगड़ने लगे, और मुझे लगा कि दादाजी ने पेशाब कर दिया. मेरी साड़ी और मेरी गांड दोनों गीली हो गयी थी. फिर हम दोनों थक गए थे, तो दादाजी मुझे बाँहों में जकड कर ही सो गए. सुबह मुझ से पहले तो दादाजी उठ गए थे. लेकिन मेरी ट्रेनिंग स्टार्ट हो चुकी थी.
दादाजी मुझे दिन में नोर्मल कपडे पहने के लिए बोलते थे, लेकिन लगभग हर रात को मुझे साड़ी पहना कर मेरा चूसते थे. एक दिन तो उन्होंने मुझसे अपना चुस्वाया. बाप रे उनका इतना बड़ा, और मेरा इतना छोटा मूंह, मेरे तो मुंह में उनका लिंग तो घुस ही नहीं रहा था. मैं बस जीभ से चाट चाट कर छोड़ दिया. अंत में उनका धीर सारा पानी निकला, उन्होंने कहा, इसे चाट कर देखो, बहुत स्वादिष्ट होता है. मुझे तो बड़ा अच्छा लगा. उस दिन के बाद से मैं हर दिन उनका चाट कर पी जाता था.

खैर अभी एक दिन उन्होंने अपने दोस्त को रात भर रुकने के लिए कहा. मैं परेशान कि आज रात कैसे करेंगे. दादाजी ने मेरी तरफ देखा फिर अपने दोस्त कि तरफ, फिर दोनों हसने लगे.
उस रात को मैं सोने गया. थोड़ी देर बाद मेरी नींद खुली, मैंने देखा दादाजी और उनके दोस्त, एक दुसरे का चाट रहे हैं, मुझे जगा देख कर मुझे बीच में बिठा ली. अब मैं दादाजी का चाट रहा था, दादाजी दोस्त का चूस रहे थे और उनके दोस्त मेरा चूस रहे थे. थोड़ी देर के बाद, दादाजी ने अपने दोस्त कि गांड पर खूब सारा तेल मला और फिर उनकी गांड में अपना लिंग दे दिया.
"देखो, ऐसे ही तुम मेरी गांड में अपना लिंग देना."
थोड़ी देर तक दादाजी ने अपने दोस्त के गांड मारी, फिर दादाजी दह गए. फिर दादाजी के दोस्त, दादाजी पर सवार हो गए. उन्होंने फिर दादाजी कि गांड मारी. दादाजी मेरा चूसने लगे. फिर मैं और उनके दोस्त, दोनों दह गए.
अगले दिन से दादाजी ने कहा, जैसा कल रात हुआ था, आज से तू कर सकती है.
उस दिन रात को पहली बार दादाजी की गांड मारी. बदले में दादाजी ने मेरी गांड में ३ ऊँगली से चुदाई की. उसके बाद दादाजी ने कहा, आज तेरे लिए एक काम है, ये मोमबत्ती तू आज से ले कर कल तक अपनी गांड में रख, थोडा दर्द होगा, लेकिन फिर बहुत मजा आएगा. तू हगने जाये तो निकल लेना, जब हग ले तो अपनी गांड धो कर वापस डाल देना, फिर मैं तुझे एक नया करतब कल दिखाऊँगा. वो दिन बड़ी मुश्किल से गुजरा था.
अगली रात को दादाजी ने मुझे फिर से साड़ी पहनाई. साड़ी पहनाने के बाद मेरी गांड से मोमबत्ती निकली, फिर चाट चाट कर मेरी गांड नर्म कर दी. एक वेसलिन का डिब्बा निकला और खूब सारा वेसलिन मेरी गांड पर लगाया. फिर उन्होंने अपना लिंग मेरी गांड में दे दिया. मैं दर्द के मारे चिल्लाने लगा. पर दादाजी को कोई फर्क नहीं पड़ा. वो अपनी स्पीड से चोदते जा रहे थे. मेरी गांड पकड़ कर उसे आगे पीछे करने लगे. थोड़ी देर रुक कर मेरे निप्प्ले भी मसलने लगते. कभी कभी मेरा लिंग पकड़ कर उसे हिलाने लगते और मैं असहाय सा अपनी गांड चुदते देख रहा था. थोड़ी देर में मुझे भी मजा आने लगा. दादाजी ने फिर मुझे सीधा किया और मेरी दोनों टाँगे उठाई, फिर मेरी गांड पर अपने लिंग का सूपड़ा रखा और फिर एक झटके में मेरी गांड के अन्दर. दादाजी बिना रुके मेरी गांड पर हमला किये जा रहे थे.
"वाह बेटी तेरे जैसी कसी गांड तो बहुत दिनों के बाद मिली है. आज तो पूरा मजा लिए बिना मानूंगा नहीं."
दादाजी की पूरी तोंद आगे पीछे हिल रही थी.
"तुझ जैसे गांडू को तो तेरे बाप से भी चुदावऊंगा. कल ही उसे फ़ोन किया था. आता ही होगा तेरा बाप."
दादाजी का कहना ही था कि पापाजी आ गए थे.
"बापू ये क्या? मेरे बिना ही स्टार्ट कर दिया? वो तो दरवाजा खुला था तो मैं आ गया, वरना मेरे बिना ही इसका शील भंग हो जाता, मेरा खून है, इसकी सील तो मैं ही तोडूंगा."
"ठीक है बेटा, तू इसकी गांड मार, मैं इससे चुसवा लेता हूँ, बहुत मस्त चूसता है, एक दम नयी पर साली तजुर्बे वाली रांड है. इसकी जैसी गांड तो तेरी भी नहीं थी. गाँव भर कि हर औरत कि गांड और चूत मारी है, लेकिन किसी की छेद इतनी टाईट नहीं थी. मजा आ गया. पर पहले एक चुम्मा तो दे मुझे, तेरे बेटे को तैयार कर दिया, इसका इनाम भी मिलना चाहिए."
कह कर दादाजी ने मेरी गांड से अपना लंड निकला. पापा और दादाजी ने एक जोरदार किस्स लिया. किस्स करते करते, एक दुसरे का लंड सहला सहला कर खड़ा कर रहे थे. फिर मेरी बारी आई. दोनों ने अपना पोजीशन लिया. दादाजी और पापाजी ने एक साथ हमला किया. दादाजी का ७" मेरे मूंह में और पापाजी का ७.५" मेरी गांड  में. सच बताऊँ, मेरी गांड फट कर ६४ हो गयी थी. पर उस दिन का मजा ऐसा कि हर दिन मैं खुद ही साड़ी पहन कर अपनी गांड मराता था. उन दोनों ने मुझे बिलकुल रंडी बना कर छोड़ा. आजकल मेरा बॉस मुझे चोदे बिना नहीं मानता. हर बार विदेश यात्रा पर मुझे साथ ले जाता है. वहां पर अपने गोरे दोस्तों और अपने बॉस से भी मुझे चुदवता है. उसकी वजह से मुझे और मेरे बॉस को बहुत तरक्की मिल गयी है.